मंगलवार, सितंबर 16, 2008

कुछ पुरानी ग़ज़लें

#1

सच क्या है न जानोगे क्या,
बंदूकें ही तनोगे क्या?

काम-धाम जब ठप्प पड़े हैं,
जारी है तहखानों में क्या?

हड़तालें तो रहीं बेअसर,
अब शर्तें उनकी मानोगे क्या?

दुनिया कभी नही बदली पर,
हिम्मत ऐसी ठानोगे क्या?
:1999

#2

वो बेतहाशा दौड़ता था,
जबकि रास्ता रुका था.

चहक उठता था तुमसे मिल करके,
मुझमें ही वो दूसरा था.

जाग कर लोग भूल जाते थे,
ख्वाब का रास्ता कहाँ था.

भूखे लोगों के झीने सपनों में,
किन दरिंदों का कहकहा था.

झूठ के भी कई सलीके थे,
झूठ भी एक काएदा था.
:1999

1 टिप्पणी:

DHARMENDRA MANNU ने कहा…

saari rachnaayen ek saans mein padh daali... bahot sundar aur vichaarotejak rachnaayen hain...