अर्श के नीचे सफर में, मैं भी हूँ, तुम भी हो.
दोस्त ही है चाँद अपना हिज्र में भी
चाँद की बिखरी नज़र में, मैं भी हूँ, तुम भी हो.
ख्वाब है जाने का अपना अर्श पर
ख्वाब के तामीर घर में मैं भी हूँ, तुम भी हो.
ढूंढ लेगी सुबह हमको वस्ल की
रात के अन्तिम पहर में मैं भी हूँ, तुम भी हो.
: 2003