गुरुवार, सितंबर 18, 2008

राजस्थान यात्रा पर कुछ छोटी कवितायेँ

# 1
सम मरुस्थल, जैसलमेर 

रेत बिछी है
जैसे मुस्कराहट बिछ गई हो एक साथ सब पर. 

और सांझ के वक़्त 
जब सूरज डूबता है यहाँ ,
संतरे की तरह गोल,
इतना नर्म की उसमें उंगलियाँ घोंपकर
हम निकाल सकें एक बड़ी सी गूदेदार फांक 
अपने लिए.
और फ़िर रात भर खाते रहें
सूरज को मुंह में लभेडे हुए,

रेत पर. 

#2
मरुग्राम 

यह गाँव जब गाता है गीत,
तो सब ऐसे चुप्पी साध लेते हैं

कि औरतों के सिर के घडे तक नही हिलते. 

# 3
माउन्ट आबू 

पेडों तक पसरे हैं पेड़
और पहाडों तक फैले हैं पहाड़. 

इतने फैले
कि उन्हें किसी उपन्यास की तरह पढ़ा जा सकता है. 

पहाडों की आंखों में एक बेचैनी है.
जो चाय बेचते लड़के की आंखों में साफ़ देखी जा सकती है.
: Oct. 1998

1 टिप्पणी:

Avanish Gautam ने कहा…

मेरी पसंदीदा कविता!