मैंने भी कितने बहाने पाल रक्खे थे
फिर भी गाहे-बगाहे जब
वो कहती थी फूल
मैं कह देता गंध.
वो कहती थी स्पर्श
मैं कह देता था देह
वो कहती थी जीवन
मैं कहता था उम्र
उसकी नदी को मैंने कहा पानी
उसने कहा हवा तो मैंने कहा ज़रूरत
उसने कहा दुनिया तो मैंने कहा नज़रिया
और मुझे छोड़कर चली गई कविता.
: सितम्बर 2008