बुधवार, जनवरी 28, 2009

वक्त की गर्द यूँ तो मैं भी हूँ, तुम भी हो
अर्श के नीचे सफर में, मैं भी हूँ, तुम भी हो. 

दोस्त ही है चाँद अपना हिज्र में भी
चाँद की बिखरी नज़र में, मैं भी हूँ, तुम भी हो.

ख्वाब है जाने का अपना अर्श पर
ख्वाब के तामीर घर में मैं भी हूँ, तुम भी हो.

ढूंढ लेगी सुबह हमको वस्ल की
रात के अन्तिम पहर में मैं भी हूँ, तुम भी हो.

: 2003

3 टिप्‍पणियां:

चण्डीदत्त शुक्ल-8824696345 ने कहा…

खूबसूरत, अद्भुत वाक्यरचना...ब्लॉगिंग में सक्रियता यूं ही बनाए रखें। कभी हमारे चौराहे--www.chauraha1.blogspot.com पर भी आएं.

Unknown ने कहा…

बहोत सुंदर सर । ऐसा ही लिखते रहिये । हमारी शुब्कामनाए हमेशा ही साथ है ।

hindi-nikash.blogspot.com ने कहा…

आज आपका ब्लॉग देखा बहुत अच्छा लगा.... मेरी कामना है कि आपके शब्दों में नयी ऊर्जा, व्यापक अर्थ और असीम संप्रेषण की संभावनाएं फलीभूत हों जिससे वे जन-सरोकारों की अभिव्यक्ति का समर्थ माध्यम बन सकें....
कभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पधारें.........
http://www.hindi-nikash.blogspot.com


सादर-
आनंदकृष्ण, जबलपुर.